( तर्ज चारित्र्य फना ही होगा )
दो दिनकी यार जवानी ,
तेरी धूल है जिंदगानी || टेक ||
छलबल करके समय गमाया ।
नहि कुछ सतसंगत मन भाया ।
होनहा रफिर मिला बुढापा
भई बदनपर ग्लानी ।
तेरि धूलमें ० ॥ १ ॥
अपने स्वारथ दिल ललचाया |
नाहक झगडा मोल बिकाया ।
जीवन में नहीं मोहब्बत किसकी
सुख दुःख नहि कुछ जानो |
तेरि धूल ० ॥ २ ॥
ऐ बन्दे ! अब जाग खड़ा हो ।
आलस नींद में क्यों जखडा हो ।
कर नेकी से काम जगत में
रख जीवनकी बानी ।
तेरि धूल ० ॥ ३ ॥
मत मगरूरी से दिन तू काटे ।
सबकी सह ले ! बनकर छोटे । तुकड्यादास कहे सुमरन कर
यही रह जाय निशानी ।
तेरि धूल ० ॥ ४ ॥
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